आज श्रील वृन्दावन दास ठाकुर जी के आविर्भाव महोत्सव पर विशेष ::
जैसे श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यास जी ने श्रीमद् भागवत में श्रीकृष्ण लीला का वर्णन किया है, उसी प्रकार उनसे अभिन्न श्रील वृन्दावनदास ठाकुर ने श्रीचैतन्य भागवत में, श्रीचैतन्य लीला का वर्णन किया है।
आप 1429 शकाब्द वैशाखी कृष्ण द्वादशी के दिन मामगाछी ग्राम (किसी-किसी के अनुसार कुमारहट्ट) जिला नदिया, पश्चिम बंगाल में आविर्भूत हुए। आपके पिताजी का नाम श्रीवैकुण्ठ भट्ट तथा माताजी का नाम श्रीमती नारायणी देवी था। आप श्रीनित्यानंद प्रभु के अंतिम शिष्य थे।
श्री नारायणी देवी श्रीचैतन्य महाप्रभु के प्रिय भक्त श्रीवास पण्डित के बड़े भाई श्रीनलिन पण्डित की कन्या थीं। आपकी माताजी महाप्रभु जी की विशेष कृपापात्रा थी, वह महाप्रभु का अवशिष्ट प्रसाद अर्थात् उनकी पत्तल का बचा हुआ प्रसाद ग्रहण करती थी । इसी प्रसाद के प्रभाव से श्रील वृंदावनदास जी जैसे महान भक्त का जन्म हुआ।
भगवान श्रीकृष्ण की लीला में, श्रीकृष्ण की स्तन-दात्री अम्बिका की बहिन किलिम्बिका, जो हमेशा श्रीकृष्ण का प्रसाद ही ग्रहण करती थीं वही श्रीचैतन्य लीला में नारायणी देवी रूप से श्रीचैतन्य महाप्रभु की कृपा-पात्री बनीं।
श्रील वृन्दावन दास ठाकुर जी ने ‘श्रीचैतन्य भागवत’ नामक अतुलनीय ग्रन्थ की रचना की है।
श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामी जी ने श्रीचैतन्य चरितामृत में लिखा —
श्रीचैतन्य लीलार व्यास-दास वृन्दावन।
मधुर करिया लीला करिला रचन॥ (चै-चै-आ 13 / 48)
अर्थात् श्रीवृन्दावन दास ठाकुर सनातन धर्म के मूल गुरु श्रीकृष्ण द्वैपायन वेद व्यास जी के अवतार हैं। इस अवतार में आपने जो श्रीचैतन्य महाप्रभु की लीला का वर्णन किया है उसे अति मधुर और अतुलनीय कहना होगा।